स्टेड डेस्क/छिंदवाड़ा- देश के ख्यातिलब्ध कहानीकार और समांतर कहानी के पुरोधा हनुमंत मनगटे जी का अल्प बीमारी के पश्चात निधन हो गया। अंतिम यात्रा 27 दिसम्बर सोमवार सुबह 10:30 बजे उनके निवास स्थल विवेकानन्द कॉलोनी से स्थानीय मोक्षधाम के लिए निकलेगी।
वरिष्ठ कथाकार हनुमंत मनगटे ने अपने लेखन से छिन्दवाड़ा की साहित्यिक परम्परा को आगे बढ़ाया और नयी पहचान दी। वे साहित्य की प्रगतिशील परंपरा की मशाल थामकर आगे बढ़े और नयी पीढ़ी को प्रगतिशील विचारधारा से जोड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और शायद इस कारण ही छिन्दवाड़ा सहित्य जगत उन्हें बड़े प्यार से बाबा कहता है।
1 जुलाई 1935 को छिंदवाड़ा मध्य प्रदेश में जन्मे हनुमंत मनगटे अपने लेखन में समय की छाप छोड़ते हैं, उनकी रचनाओं में सतपुड़ा की वादियों का यथार्थ है। उनके कहानी संग्रह- सामना, फन, गवाह चश्मदीद, पूछो कमलेश्वर से, उपन्यास -समांतर , अंगरा, व्यंग्य संग्रह – शोक चिन्ह, कविता संग्रह- उर्वरा है वादियां सतपुड़ा की, मरण पर्व प्रकाशित हैं। वे साठोत्तरी दशक की हिंदी कहानी के एक महत्वपूर्ण कथाकार हैं , उनकी कहानियाँ सामान्य जन के लिए प्रतिबद्ध और उनकी नियति और सपनों से संबद्ध है। वे मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन का वागीश्वरी पुरस्कार, दुष्यंत कुमार सुदीर्घ साधना सम्मान से सम्मानित हैं। उन्होंने 1978 में कहानी पर केंद्रित समांतर साहित्य सम्मेलन छिन्दवाड़ा में आयोजित किया जो अपने आप मे एक मिसाल रहा। वे प्रगतिशील लेखक संघ, भारतीय जन नाट्य मंच और मध्य प्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन से गहरे तक जुड़े थे। उनका जाना छिन्दवाड़ा साहित्य जगत के एक युग का अंत है।
अतिथि संपादक- संजय औरंगाबादकर
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