कड़कड़ाती ठंड में दर्जनों परिवार हुए बेघर.. वैकल्पिक व्यवस्था के बिना चला रेलवे का बुलडोजर..?

नए निर्माण कार्य को लेकर रेलवे ने की थी कार्यवाही…

स्टेट डेस्क/छिंदवाड़ा – छिंदवाड़ा जिले के अंतर्गत परासिया में विगत कई वर्षों से लोगों ने रेलवे की जमीन पर अतिक्रमण किया हुआ था। जिसको हटाने के लिए रेलवे ने अतिक्रमणकारियों को 2 साल पहले नोटिस दिया था। वही रेलवे विभाग ने प्रभावशाली कार्यवाही करते हुए अतिक्रमणकारियों के मकानों को जेसीबी से नेस्तनाबूत कर अतिक्रमण हटाया। रेलवे के अनुसार आगे भी यह कार्य जारी रहेगा। रेलवे के अधिकारी अभिषेक गुप्ता ने बताया कि बहुत जल्द रेलवे का दूसरा ट्रैक का कार्य चालू होना है। जिसको लेकर रेलवे ने अपनी जमीन से अतिक्रमणकारियों को हटाया।

ज्ञात हो कि परासिया तहसील को कोयला खदानों के लिए जाना जाता है। यहां बड़ी संख्या में कोयला खदानें हैं। जिसमें हजारों की संख्या में मजदूर काम करते हैं। जिसके चलते क्षेत्र में डब्ल्यूसीएल की जमीन पर क्षेत्र के लोग मकान बनाकर रहते हैं। इसी के चलते रेलवे की जमीन पर भी बड़ी संख्या में अतिक्रमण हुआ है और यह अतिक्रमण वर्षों पुराना है। जिसको लेकर क्षेत्र में राजनीतिक रोटी भी सेकी जाती है। इस प्रभावशाली कार्यवाही से अतिक्रमण तो हट गया परंतु, बरसो से निवास कर रहे लोगो को अब इस कड़कड़ाती ठंड में खुले आसमान के नीचे रातें काटनी पड़ रही हैं। कार्यवाही होने के बाद से अभी तक परासिया कांग्रेस के विधायक ने बेघर हुए लोगो के लिए कोई पहल नहीं की है, तो वही जिले को अपना परिवार कहने वाले पूर्व मुख्यमंत्री विधायक छिंदवाड़ा एवं सांसद ने बेघर हुए लोगो की सुध लेना, अब तक उचित नही समझा। इसके चलते क्षेत्र में पूर्व मुख्यमंत्री विधायक एवं जिले के सांसद के प्रति असंतोष देखा जा रहा है।

कड़कड़ाती ठंड और खुले आसमान के नीचे बसेरा…?
यहां कड़कड़ाती ठंड में लगभग 70 से ज्यादा परिवार खुले आसमान के नीचे बसेरा कर रहे हैं, यह उन जनप्रतिनिधियों के लिए ज्यादा शर्मनाक है, जो इन लोगों के वोट के दम पर एयर कंडीशनर और हीटर के रूम में मलमली गर्म रजाइयों में दब कर सो रहे हैं..? लेकिन इनके पास इस कड़कड़ाती ठंड में आसमान के नीचे बूढ़ों बच्चों के साथ सो रहे लोगों की सुध लेने की फुर्सत नहीं है..? आखिर वे जनप्रतिनिधि कहां है जो क्षेत्र के लोगों की रहनुमाई करने का दम भरा करते थे..? और वे तथाकथित जनप्रतिनिधि कहां है जो इनके साथ सियासत का खेल खेला करते थे..? अब देखना यह है कि इन प्रभावितों की सुध लेने की फुर्सत कब और किसे मिलती है..?

संजय औरंगाबादकर
स्थानीय संपादक
नव चाणक्य केसरी